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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

कॉफी के प्याले में तूफान 


आज सुबह जगा तो देखा कि आसमान पर काली काली घटाएं छा रहीं हैं । रिमझिम रिमझिम फुहारें पड़ रहीं हैं । हवा भी बड़ी तेज चल रही है । रह रहकर बिजली कड़क रही है । पेड़ पौधे सब मौसम की सुर-ताल के साथ लय बद्ध तरीके से तान में तान मिलाकर झूम रहे हैं । फूल कलियों से प्रेम का इजहार कर रहे हैं । हरी हरी घास ओस की बूंदों को अपनी बांहों में लेकर थपकी देकर सुला रही है । मधुमालती, चमेली, रात रानी मस्त होकर महकती हुई मतवाली चाल चल रहीं हैं जिससे गुलाब , गुड़हल , एडीनम के फूलों के दिल घायल हो रहे हैं । उधर अनार और अमरूद थोड़े डरकर अपनी कोटरों से चुपके चुपके झांक रहे हैं । उन्हें डर लग रहा है कि अगर ये हवाएं थोड़ी और तेज चलीं तो कहीं उन्हें अपने परिवार (पेड़) से अलग तो नहीं कर देंगी ? और अभी तो वे बच्चे ही हैं । उन्हें बड़ा होने में कम से कम एक दो माह तो लग ही जाएंगे । 

यह नजारा सचमुच मनमोहक था । पर अनार और अमरूद के "बच्चों" पर थोड़ा तरस भी आ रहा था मगर हम कर भी क्या सकते हैं दिलासा देने के अतिरिक्त । बस, वही किया । जैसे ही प्यार से हाथ फेरा वे खुश हो गए। जब बच्चे को पिता का संबल मिला जाता है तो वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लगता है । मां की गोदी तो स्वर्ग है ही । 

मैं अभी इस मौसम की मस्ती का भरपूर आनंद ले ही रहा था कि श्रीमती जी चाय के साथ साथ गरमागरम पकौड़े भी ले आईं । वाह , क्या कहने ! "चुपड़ी और दो दो" । एक देसी कहावत है ये । मतलब कि किसी भूखे आदमी को रोटी मिल जाए और वह भी देसी घी से चुपड़ी हुई तो उसकी खुशियों का कोई ओर छोर नहीं होता । और अगर दो दो चुपड़ी रोटी एक साथ मिल जाए तो फिर कहना ही क्या ? कुछ यही हाल‌ हमारा भी हो रहा था । एक तो मौसम हसीं उस पर श्रीमती जी और हंसीन । समझ नहीं आ रहा था कि दोनों में ज्यादा हसीन कौन है ? दिल की अदालत में मुकदमा गया तो दिल ने फैसला सुना दिया । श्रीमती जी के सामने तो मौसम कहीं टिकता ही नहीं है । इसमें असमंजस की बात ही कहां है " ? अब तो अदालत का फैसला भी हो गया था , अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी । 

ऐसे मौसम में एक हसीं जब साथ हो और गरमागरम चाय की प्याली के साथ गरमागरम पकौड़े भी हरी चटनी, सॉस और मसाले के साथ हों तो फिर लगता है कि अगर दुनिया में कहीं जन्नत है तो बस यहीं है, यहीं है, सिर्फ यहीं है । 

हम अभी इन सबका आनंद ले ही रहे थे कि श्रीमती जी मौन तोड़ते हुए बोलीं 

"आज सुबह से ही कितना खराब मौसम हो रहा है" 

हमने कहा "अजी शुभ शुभ बोलिए । मौसम खराब नहीं खुशनुमा हो रहा है" 

"आप तो हमेशा ही शायराना मूड में होते हैं । देखिए वो काले काले बादल ? कैसे दौड़े जा रहे हैं ? और ये हवा ? कितनी तेज है ? बिजली भी रह रहकर कड़क रही है । बारिश से पूरी बॉलकानी भीगी हुई है , और आप कह रहे हैं कि मौसम बड़ा खुशनुमा है । यह भी कोई बात हुई भला ? कितना काम बढ़ा दिया है इसने मेरा ? इसकी वजह से सुबह सुबह पकौड़े भी तलने पड़े । नहीं तो आपके ताने खाने पड़ते" । थोड़ा मुस्कुराते हुए वो बोलीं । 

हमने उनका हाथ अपने हाथ में थामकर कहा "देखिए जी । मौसम कितना मस्त है कि मैं बता नहीं सकता हूं । काश कि मैं एक कवि होता और तुम्हारे घने लंबे काले केशों पर कोई कविता लिखता । काश कि मैं कोई शायर होता और तुम्हारे लबों पर कोई गजल लिखता । काश कि मैं कोई गायक होता तो तुम्हारे सौंदर्य पर कोई गीत गाता । मगर मैं एक महज "कलम घसीटू" आदमी हूं जो कभी कभार तुकबंदी कर लेता हूं । आज इस मौसम के मिजाज ने हमें भी शायर बनने का अनुरोध किया है । तो आपकी शान में इतना ही कहेंगे कि ये जो काली काली घटाएं हैं ना , ये किसी तुम्हारी जुल्फों की तरह हैं । ऐसा लगता है कि  तुमने अपनी जुल्फें खोलकर हवा में बिखरा दीं हैं और उन जुल्फों से रह रह कर पानी की बूंदें टपक रहीं हैं जो यहां तक आते आते रिमझिम फुहारों में तब्दील हो गई हैं । इनमें भीगकर ऐसा लगता है कि जैसे हम आपकी जुल्फों तले बैठकर आपके बालों से निचुड़ते पानी का आनंद ले रहे हैं । ये जो बिजली है ना  आपकी तेज चमकीली आंखें हैं जिनके तेज में न जाने मैं कब से जलकर भस्म हो रहा हूं । ये जो शीतल हवा बह रही है यह आपका उड़ता हुआ आंचल है । जब आपका यह आंचल मेरे मुखड़े पर आता है तो कितना मधुर अहसास होता है । दिल की धड़कनें "राग ए मोहब्बत" सुनाने लगी हैं । मुझे तो इस मौसम में हर तरफ तुम ही तुम नजर आ रही हो बस । और इस अहसास ने मेरे मन में जो तरंगें पैदा की हैं उन्हें मैं शब्दों में बयां नहीं कर पा रहा हूं" । 

मैं कुछ और कह पाता इससे पहले ही उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और कहा "बस बस, अब ये शायरी बंद कीजिए और चाय के साथ गरमागरम पकौड़ों का आनंद लीजिए नहीं तो दोनों ही ठंडे हो जाएंगे" । 

हमने कहा "अजी हम इन्हें ठंडा होने देंगे तब ना । हमारे साथ साथ एक "हीटर" भी तो है जिसकी हीट से ये चाय और पकौड़े ही नहीं , हम भी तो सुलग रहे हैं" । हमने तिरछी नजरों से श्रीमती जी की ओर देखा । 
"छोड़ो भी । जब देखो शुरू हो जाते हैं । कुछ तो खयाल रखा करो । देखते नहीं बच्चे कितने बड़े हो गए हैं"? 

हमने कहा "बच्चे चाहे जितने भी बड़े हो गए हों मगर ये दिल तो अभी भी बच्चा ही है । और मेरी ख्वाहिश है कि यह हरदम बच्चा ही बना रहे । एकदम मासूम , निर्मल, निष्कपट, सरल । बिल्कुल तुम्हारी तरह । और जिंदगी ऐसे ही मोहब्बत के सागर में गोते लगाते हुए बीत जाए" । 


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1 Comments

Milind salve

11-Jul-2022 06:36 PM

बहुत खूब

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